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या ते॑ जि॒ह्वा मधु॑मती सुमे॒धा अग्ने॑ दे॒वेषू॒च्यत॑ उरू॒ची। तये॒ह विश्वाँ॒ अव॑से॒ यज॑त्रा॒ना सा॑दय पा॒यया॑ चा॒ मधू॑नि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā te jihvā madhumatī sumedhā agne deveṣūcyata urūcī | tayeha viśvām̐ avase yajatrān ā sādaya pāyayā cā madhūni ||

पद पाठ

या। ते॒। जि॒ह्वा। मधु॑ऽमती। सु॒ऽमे॒धाः। अग्ने॑। दे॒वेषु॑। उ॒च्यते॑। उ॒रू॒ची। तया॑। इ॒ह। विश्वा॒न्। अव॑से। यज॑त्रान्। आ। सा॒द॒य॒। पा॒यया॑। च॒। मधू॑नि॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:57» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष वा विदुषि स्त्री ! (ते) तुम्हारी (या) जो (देवेषु) विद्वानों में (मधुमती) बहुत सत्यभाषणोंवाली (सुमेधाः) जिसमें उत्तम बुद्धि विद्यमान वह (उरूची) बहुत विद्याओं को प्राप्त होती हुई (जिह्वा) वाणी (उच्यते) कही जाती है (तया) उससे (इह) इस गृहाश्रम में (विश्वान्) सम्पूर्ण (यजत्रान्) मिले हुए श्रेष्ठ पुत्रों को (आ, सादय) प्राप्त कराओ (च) और इनकी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (मधूनि) मधुरता से युक्त पीने के योग्य विशेष रसों का (पायय) पान कराओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री और पुरुष प्रसन्नता से विवाह किये हुए विद्या बुद्धि और उत्तम वाणी से युक्त इस संसार में गृहाश्रम में वर्त्तमान होकर प्रेम से उत्पन्न होनेवाले पुत्रों को उत्पन्न पालन और उत्तम शिक्षायुक्त करके तथा स्वयंवर विवाह कराके निवास कराते हैं, वे ही गृहाश्रम में मोक्ष के सदृश सुखका अनुभव करते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने स्त्रि पुरुष वा ते तव या देवेषु मधुमती सुमेधा उरूची जिह्वोच्यते तयेह विश्वान्यजत्रानासादयैषामवसे च मधूनि पायय ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (ते) तव (जिह्वा) वाणी जिह्वेति वाङ्नाम। निघं० १। ११। (मधुमती) बहूनि मधूनि सत्यभाषणानि विद्यन्ते यस्यां सा (सुमेधाः) शोभना मेधा यस्यां सा (अग्ने) विद्वन् विदुषि वा (देवेषु) विद्वत्सु (उच्यते) कथ्यते (उरूची) या उर्वीर्बह्वीर्विद्या अञ्चति प्राप्नोति सा (तया) (इह) अस्मिन् गृहाश्रमे (विश्वान्) समग्रान् (अवसे) रक्षणाद्याय (यजत्रान्) संगतान् पूज्यान् तनयान् (आ) (सादय) प्रापय (पायय)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (च) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मधूनि) मधुयुक्तानि रसविशेषाणि पेयानि ॥५॥
भावार्थभाषाः - यदि स्त्रीपुरुषौ प्रसन्नतया कृतविवाहौ विद्याप्रज्ञासुवाणीयुक्तौ भूत्वेह गृहाश्रमे स्थित्वा प्रेमजान्यपत्यान्युत्पाद्य पालयित्वा सुशिक्षायुक्तानि कृत्वा स्वयंवरं विवाहं कारयित्वा निवासयन्ति त एवाऽत्र गृहाश्रमे मोक्षमिव सुखमनुभवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे स्त्री-पुरुष या जगात प्रसन्नतेने विवाह करून विद्या, बुद्धी व उत्तम वाणी यांनी युक्त होऊन गृहस्थाश्रमात राहतात व प्रेमाने पुत्रांना उत्पन्न करून पालन करतात. उत्तम शिक्षणयुक्त बनवून स्वयंवर विवाह करवून, निवास करवितात तेच गृहस्थाश्रमात मोक्षाप्रमाणे सुख अनुभवतात. ॥ ५ ॥